Aashama (Hindi) By Pradip Kumar ‘Deep’

मित्रों आपने जैसा प्रेम मेरे प्रथम ग़ज़ल संग्रह को दिया है, मै आशा करता हूँ, इस ग़ज़ल संग्रह को भी आप उतना ही पसंद करेंगे I जैसा की मैंने पिछली पुस्तक मै भी कहा है, कि उर्दू के कुछ लफ्ज़ों ने वख्त के साथ अपना स्वरूप और सुर भी बदला है I इसी को ध्यान में रखते हुए, मैंने उन लफ्ज़ों जैसे – क़त्ल-कतल, मर्ज़-मरज़, दफ्न-दफ़न आदि का के उसी रूप प्रयोग करके, ग़ज़ल को सुगम बनाने की कोशिश की है, और ऐसा करते समय, मैंने पूरा ध्यान रखा है, कि वह भद्दा और बेसुरा न लगे, ताकि ग़ज़ल आम लोगों को अपने ज्यादा क़रीब महसूस हो I मेरा भाषा के साथ छेड़छाड़ करने का कोई इरादा नहीं है, मेरा मत है, समय के साथ भाषा भी अपना स्वरूप बदलती है I यह पुस्तक मेर्रे परिवार को समर्पित है, जिसने मेरा जीवन के हर मोड़ पर साथ दिया है I आपका प्रदीप कुमार दीप I