बीत गई ये दिवाली भी बिन तेरे क्या बाकी की ज़िंदगी भी तेरे बग़ैर बितानी है मर गया है दिल बस जिंदा हूँ मैं अब ज़िंदगी भर ये लाश सीने में दबानी है किसी एहसास के चरम तक भर जाने के पश्चात हृदय से उत्पंन भाव-आवेगों को जब किसी के साथ साझा करने की कोशिश की जाती है तो न तो कोई उन्हें समझने का प्रयास करता है और न ही समझ पाता है तब जा के कविता जन्म लेती है| इन्हीं एहसासों और भावनाओं की यात्रा कराती यह पुस्तक ‘न जाने क्यूँ’! आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | मुझको अब भी है याद वो तेरी शब-ए-फ़िराक़ वो तेरा टूटकर लिपटना और मेरे खाली से हाथ – नागेश कुमार (बी.टेक, एम.ए.)
