Description
मित्रों आपने जैसा प्रेम मेरे प्रथम ग़ज़ल संग्रह को दिया है, मै आशा करता हूँ, इस ग़ज़ल संग्रह को भी आप उतना ही पसंद करेंगे I जैसा की मैंने पिछली पुस्तक मै भी कहा है, कि उर्दू के कुछ लफ्ज़ों ने वख्त के साथ अपना स्वरूप और सुर भी बदला है I इसी को ध्यान में रखते हुए, मैंने उन लफ्ज़ों जैसे – क़त्ल-कतल, मर्ज़-मरज़, दफ्न-दफ़न आदि का के उसी रूप प्रयोग करके, ग़ज़ल को सुगम बनाने की कोशिश की है, और ऐसा करते समय, मैंने पूरा ध्यान रखा है, कि वह भद्दा और बेसुरा न लगे, ताकि ग़ज़ल आम लोगों को अपने ज्यादा क़रीब महसूस हो I मेरा भाषा के साथ छेड़छाड़ करने का कोई इरादा नहीं है, मेरा मत है, समय के साथ भाषा भी अपना स्वरूप बदलती है I यह पुस्तक मेर्रे परिवार को समर्पित है, जिसने मेरा जीवन के हर मोड़ पर साथ दिया है I आपका प्रदीप कुमार दीप I
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